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Briefly explain the major provisions of the Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021. Also, highlight the social media intermediaries’ concerns regarding these rules After 62 years of signing the Indus waters treaty, India has moved to amend this treaty with Pakistan. Discuss the reasons for this pathbreaking intention of India to modify the treaty with implications on India-Pakistan relations further.

                                    संगम युग     

एतिहासिक युग के प्रारंभ में दक्षिण भारत का क्रमबद्ध इतिहास हमे जिस साहित्य से ज्ञात होता है उसे संगम साहित्य हा जाता हैसंगम शब्द का र्थ परिषद् थवा गोष्ठी होता है जिनमें तमिल कवि एवं विद्वान एकत्र होते थेप्रत्येक कवि अथवा लेखक अपनी रचनाओं को संगम के समक्ष प्रस्तुत करता था तथा इसकी स्वीकृति प्राप्त हो जाने के बाद ही किसी भी रचना का प्रकाशन संभव थापरम्परा के अनुसार अति प्राचीसमय में पाण्ड्य राजाओं के संरक्षण में कुल तीन संगम आयोजिकिए गएइनमें संकलित साहित्य को ही संगम साहित्य की संज्ञा प्रदान की गयी

उपलब्ध संगम साहित्य का विभाजन तीन भागों में किया जाता है

1. पत्थुप्पात्तु 2. इत्थुथोकै तथा 3. पादिनेन कीलकन्क्कु

> तिरूवल्लुवर कृत कुराल तमिल साहित्य का एक धारभूत ग्रंथ 

बताया जाता हैइसके विषय त्रिवर्ग आचारशास्त्र, राजनीतिआर्थिजीवन एवं प्रणय से संबंधित है। 

 प्रथम संगम (4440 वर्ष पूर्व )—  मदुरा (समुद्र में विलीन) —अगस्त्य — महत्वपूर्ण ग्रन्थ :अकट्टियम परिपदाल, मदुनार, मुदुकुरुकु तथा कलारि आविरै । (कोई भी इनमें उपलब्ध नहीं है)

दूसरा संगम (3700 वर्ष पूर्व)कपाटपुरम  (लैवाई)  (समुद्र में विलीन) –  अगस्त्य —तोल्काप्पियम (तमिव्याकरण  चनाकारतोल्काप्पियर)

 तीसरा संगम 1850 वर्ष पूर्व —  मदुरा —नक्कीरर — नेदुन्थोकै, कुरुन्थोकै, नत्रिनईएन्कुरु भूरू, परिपादल, कुथुवरि, पेरिसै तथा सित्रिसै आदि

 कवियों और विद्वानों की परिषद् के लिए संगम नाम का प्रयोग सर्वप्रथम सातवीं शती के प्रारंभ में शैव सन्त (नायनार) तिरूनाबुक्क रशु (प्पार) ने किया

इलांगो कृशिल्पादिकारम् (पायलों का गी) एक उत्कृष्ट रचना है जो तमिल नता में राष्ट्रीय काव्य के रूप में मानी जाती हैइसमें 30 सर्ग हैं जिन्हें तीन खण्डों में लिपिबद्ध किया गया हैबौद्ध रुझावाला महाकाव्य हैइसमें कावेरीपट्टन के कोवलन उसकी पत्नी कण्णगि एवं र्तकी माधवी की प्रेम हानी है

मदुरा के बौद्ध धर्मावलंबी व्यापारी सीतलैसत्तनार ने मणिमेकले की रचना कीइसमें 30 सर्गों के अतिरिक्त एक प्रस्तावना भी हैइसमें जैन प्रभाव हैइसमें राजकुमार उदयकुमारन् एवं मणिमेकलै (कोवलन वं र्तकी माधवी की पुत्री) की प्रेकहानी हैइस ग्रंथ की कहानी दार्शनिक एवं शास्त्रार्थ संबंधी बातों के लिए बनाई गई हैइसका महत्व मुख्यतः धार्मिक हैनीलकंठ शास्त्री के अनुसार यह बौद्ध लेखक दिङनाथ (5वीं शती) की कृति न्याय प्रवेशपर आधारित है

 जीवकचिन्तामणि संगमकाल के बहुत बाद की रचना हैइसकी रचना का श्रेय जैन भिक्षु तिरुत्तक्क देवर को दिया जाता हैकहा जाता है कि तिरुत्तक्क देवर पहले चोल राजकुमार था जो बाद में जैन भिक्षु बन गया। 

तोल्काप्पियम, तमिल व्याकरण हैपाँचवीं सदी के बाद बहुत सी प्रसिद्ध तमिल रचनाएँ नैतिक वं दार्शनिक उद्देश्यों से लिखी  गयीं, इनमें तिरुवल्लुवार की तिरुकुरल सबसे प्रसिद्ध है

रामकथा के अनेक तमिल संस्करहैं, जिनमें बसे प्रसिद्ध कम्बन की रामावतारम है

संगम साहित्य के काव्य को दो श्रेणियों में बाँटा गया है.....अकम और पुरमअकम काव्यों का मूविषय प्रेम प्रसंग है जबकि पुरम काव्यों का विषय युद्ध है

संगम साहित्य में हमें तमिल प्रदेश के तीन राज्यों चोल, चेर, तथा पाण्ड्य का विवरण प्राप्त होता हैउत्तरपूर्व में चोल, दक्षिण पश्चिम में चेर तथा दक्षिपूर्व में पाण्ड्य राज्य स्थित था

संगम युगीन राज्यों में सर्वाधिक शक्तिशाली चोलों का राज्य थायह पेन्नार तथा दक्षिणी वेल्लारू नदियों के बीच स्थित थाइसका सबसे प्रतापी राजा करिकाल था

करिकाल ब्राह्मण मतानुयायी था और इसे ब्राह्मण धर्म को राजकीय संरक्षण प्रदान कियापुहार पत्तन का निर्माण इसी के समय हुआइसने कावेरी नदी के मुहाने पर बाँध बनवाया तथा सिंचाई करने के लिए नहरों का निर्माण करवायापेरूनानुन्नुपादे में रिकाल को संगीत के सप्तस्वरों का विशेषज्ञ बताया गया है

संगम युग का दूसरा राज्य चेरों का था जो आधुनिकेरल प्रान्त में स्थित था । इस राज्य के कुछ प्रमुख राजा हुएउदियंजीरल (लगभग 130 .), नेदुंजीरल आदन (155 .) एवं सेनगुटुवन (180 .)

सेनगट्टवन ने अधिराज की उपाधि ग्रहण कीइसने पत्तिनी नामक धार्मिसम्प्रदाय को माज में प्रतिष्ठित किया

संगम युग का तीसरा राज्य पाण्ड्यों का था जो कावेरी के दक्षिण में स्थित थाइसकी राजधानी मदुरा में थीपाण्ड्य राजाओं में नेडुंजेलियन (लगभग 210 .) सबसे शक्तिशाली था

संगम युग में मंत्रियों को अमाइच्चान या अमाइच्चाकहा जाता था

राजधानी में एक राजसभा होती थी जिसे नालवै कहा जाता थायह राजा के सान्याय का कार्य करता थाराजा देश का प्रधान न्यायाधीश तथा भी प्रकाके मामलों की सुनवाई की अंतिम अदालत होता थाराजा के न्यायालय को मन्नराम कहा जाता था

चोरी तथा व्यभिचार के अपराध के लिए मृत्युदण्ड दिया जाता थाझूठी गवाही देने पर जीभ काट ली जाती थी

भूमिकर नकद तथा अनाज दोनों रूपों में अदा किया जाता थासंभवतः यह पज का ठा भाग होता था, किन्तु कभीकभी इसे ढ़ाया जाता थाव्यापारियों से सीमा शुल्क एवं चुंगी वसूल की जाती थी

सेना चतुरंगिणी होती थी जिसमें अश्व, गज, रथ तथा पैदसिपाही सम्मिलिथेनागड़ा एवं शंख बजाकर सैनिकों को बुलाया जाता थायद्ध भूमि में वीरगति पाने वाले सैनिकों के सम्मान में पत्थर की मूर्ति बनवाए जाने की प्रथा थी

राजा अपने आवास की रक्षा के लिए सशस्त्र महिलाओं को तैनात करता था

संगम काल में समय जानने के लिए जल घड़ी का प्रयोग किया जाता थातमिल प्रदेश में ब्राह्मणों का उदय सर्वप्रथम संगम काल में हुआ जो समय का सबसे प्रतिष्ठित वर्ग थाइसकी हत्या को सबसे बड़ा अपराध माना जाता थासंगम कालीन ब्राह्मण मांस भक्षण रते थे तथा सरा पीते थे

 ब्राह्मणों के पश्चात संगम  युगीसमाज में वेल्लार वर्ग  का स्थान थाइसका मुख्य पेशा कृषि कर्म था

पुलैयन: दस्तकारों का एक वर्ग था जो रस्सी तथा पशुचर्म की सहायता से चारपाई एवं चटाई बनाने का कार्य करते थे।

एनियर : शिकारियों की एक जाति थी

मलवर : लुटपाट करने वाली जाति थी

संगम साहित्य में व्यापारी वर्ग  को वेनिगर कहा या है

संगम साहित्य में दास प्रथा के अस्तित्व का प्रमाण नहीं मिलता है। 

संगम काल में कृषि, पशुपालन व शिकार जीविका के मुख्य आधार थे। दक्षिण भारत में अगस्त्य ऋषि द्वारा कृषि का विस्तार किया गया। जहाजों का निर्माण तथा कताई-बुनाई महत्वपूर्ण उद्योग थे । ‘उरैयूर’ सूती वस्त्र उद्योग का महत्वपूर्ण केन्द्र था। अधिकांश व्यापार वस्तु-विनिमय में होता था। बाजार को ‘अवनम’ कहते थे। पाण्ड्य राज्य के प्रमुख बंदरगाह शालीयुर, कोरकाय आदि थे। चोल राज्य के प्रमुख बंदरगाह पुहार और उरई थे। टालमी ने कावेरी पट्टनम को ‘खबेरिस’ नाम दिया है। तोंडी, मुशिरी तथा पुहार में यवन लोग बड़ी संख्या में विद्यमान थे। संगम काल में रोम के साथ व्यापार उन्नत अवस्था में था। अरिकामेडु से रोमन लोगों की बस्ती रोमन सम्राट ऑगस्टस व टिवेरियस की मुहरें मिली हैं। पेरिप्लस ने अरिकामेडु को ‘पोडुका’ कहा है। पश्चिमी देशों को काली मिर्च, मसाला , हाथीदांत ,रेशम , मोती, सूती वस्त्र, मलमल आदि का निर्यात किया जाता था। आयातित वस्तुओं में सिक्के, पुखराज, छपे हुए वस्त्र, शीशा, टीन, तांबा व शराब प्रमुख थे। पुहार एक सर्वदेशीय महानगर था । यहां विभिन्न देशों के नागरिक रहते थे । संगम काल में दक्षिण भारत का मलय द्वीपों व चीन के साथ भी व्यापार था। यूनान के दक्षिण भारत के साथ व्यापार के कारण ग्रीक भाषा में चावल, अदरक आदि शब्द तमिल भाषा से लिए गए थे। पेरिप्लस में संगम युग के 24 बंदरगाहों का उल्लेख किया है जो सिन्ध नदी के मुहाने से लेकर कन्याकुमारी तक विस्तृत थे। भूमि मापन की इकाई वैली या माहोती थी। अंबानम अनाज का माप था। नाली ,अल्लाकू और उल्लाक भी छोटे माप थे ।

तोल्काप्पियम नामक तमिरचना से ज्ञात होता है कि संगम काल में विवाह को सस्कार के रूप में मान्यता प्रदान की गयी थीइसमें हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णित विवाह के आठ प्रकारों (ब्रह्मदे, आर्ष, प्रजापत्य, असुर, गान्धर्व, राक्षस तथा पैशाच) का उल्लेख मिलता है

प्रणय विवाह की मान्यता दी गई थी जिसे पंचतीनै हा गया हैएक पक्षीय प्रणय को कैविकणे नुचिप्रणय को पेरून्दिण हा गया है

संगम काल में चावल मुख्य खाद्यान्न थाइसे दूध में मिलाकर सांभनामक खाद्यान्न तैयार किया जाता था

नर्तक, र्तकियों गायकों के दल धूमधूम कर लोगों का मनोरंजन किया करते थेसंगम साहित्य में इन्हें पाणर विलियर कहा गया है

तमिल साहित्य में मच्चेलियर तथा ओवैयर जैसी कवियित्रियों की चर्चा हुई है जिससे स्पष्ट है कि इस काल की स्त्रियाँ सुशिक्षिता होती थी

संगम काल के लोग कौवे को शुभ क्षी मानते थो जो अतिथियों के आगमन की सूचना देता थाकौवे नाविकों को सही दिशा का भी बोध राते थेइस कारण सागर के मध्य चलने वाले जहाजों के साथ उन्हें ले जाया जाता था

संगम काल में समाधियों के स्थान पर पत्थर गाड़ने की प्रथा थीइन्हें वीरगल अथवा वीरप्रस्तर कहा जाता थाइनकी पूजा भी होती थी। प्रायः युद्ध में वीरगति प्राप्त सैनिकों के सम्मान में खड़े किए जाते थे

संगकाल में किसानों को वेल्लार तथा उनके प्रमुखों को वेलिर कहा जाता था

संगम साहित्य से पता चलता है कि समाज के निम्न वर्ग की महिलाएँ ही मुख्यतः खेती का कार्य किया करती थीइने कडैसिवर कहा गया है

संगम काल में चोलों की समृद्धि का मुख्य कारण उनका सुविकसित वस्त्रोद्योग था

पाण्ड्य राज्य में कोर्कई, शालियूर एवं चेर राज्य में बन्दर प्रमुख बन्दरगाह थाकोर्कई मोती खोजने का प्रमुपत्तन था

कोरोमण्डल समुद्रतट पर दुचेरी से तीन किमी क्षिण में स्थित अरिकमेडु चोल वंश का एक प्रमुख बन्दरगाह थाइस बन्दरगाह से रोम के साथ व्यापार होता था1945 . में हुई यहाँ की खुदाई से एक विशारोमन स्ती का पता चला हैयहाँ मनकों के निर्माण का कारखाना भी थापेरिप्लस में अरिकमेडु को पेडोक कहा गया है

संगम काल में ही मिस्र के एक नाविक हिप्पोलस ने मानसूनी हवाओं के सहारे बड़े जहाजो से सीधे समुद्र पार कर सकने की विधिखोजी।

तमिल देश का प्राचीदेवता मुरुगन थाकालान्तर में उसका नाम सुब्रह्मण्य हो गया स्कन्दकार्तिकेय के साथ उसका तादात्म्य स्थापित कर दिया गयाहिन्दू र्म में स्कन्दकार्तिकेय को शिवपार्वती का पुत्र माना गया हैस्कन्द का एक नाम मार भी है और तमिल भाषा में मुरुगन शब्द का यही अर्थ होता हैमुरुगन का प्रतीक मुर्गा माना जाता था तथा उसके विषय में यह मान्यता थी कि उसे पर्वत पर क्रीड़ा करना अत्यधिक प्रिय हैउसका अस्त्र बर्खा थाकुरवस नामक एक पर्वतीजनजाति की स्त्री को मुरुगन की पत्नियों में माना गया है। 

संगम युग में दक्षिण भारत में वैदिक धर्म का आगमन हुआ। दक्षिण भारत में मुरुगन की उपासना सबसे प्राचीन है। मुरुगन का एक अन्य नाम सुब्रमणयम भी मिलता है। बाद में सुब्रमणयम का एकीकरण स्कन्ध कार्तिकेय से किया गया। मुरगन का दूसरा नाम वेलन भी था। वेल या बरछी इनका प्रमुख अस्त्र था। मुरगन का प्रतीक मुर्गा था। पहाड़ी क्षेत्र के शिकारियों पर्वत देव के रूप में मुर्गन की पूजा करते थे मुरुगन की पत्नियों में एक कुरवस नामक पर्वतीय जनजाति की स्त्री हैं। परशुराम की माता मरियम्मा, चेचक की देवी थीं। विष्णु का तमिल नाम ‘तिरुमल’ है। किसान मेरूडम इंद्र देव की पूजा करते थे। पुहार के वार्षिक उत्सव में इन्द्र की विशेष पूजा होती थी।

मणिमेखलै में कापालिक शैव सन्यासियों का वर्णन है, इसमें बौद्ध धर्म के दक्षिण में प्रसार का वर्णन है। शिल्पादिकारम में जैन धर्म के संस्थानों का वर्णन है।

 


इसके अगले टॉपिक में गुप्त वंश की चर्चा की जाएगी ।

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