1 भारत परिषद अधिनियम,1909
2 भारत सरकार अधिनियम 1919
3 भारत सरकार अधिनियम 1935
1 भारत परिषद अधिनियम,1909
पृष्ठभूमि-
1906 में ढाका में नवाब सलीमुल्लाह, नवाब मोहसिन-उल-मुल्क और वकार-उल-मुल्क द्वारा मुस्लिम लीगकी स्थापना की गयी थी। लार्ड मिंटो से मिलने वाला यह प्रतिनिधिमंडल शीघ्र ही मुस्लिम लीग में सम्मिलित हो गया। मुस्लिम लीग ने मुसलमानों को साम्राज्य के प्रति निष्ठा प्रकट करने की शिक्षा दी तथा मुस्लिम बुद्धिजीवियों को कांग्रेस से पृथक रखने का प्रयास किया। इसके अतिरिक्त कांग्रेस द्वारा प्रतिवर्ष सुधारों की मांग करने, नरम दल को संतुष्ट करने, अतिवादियों के प्रभाव को कम करने तथा क्रांतिकारी राष्ट्रवाद को रोकने के लिये भी सुधार किया जाना आवश्यक हो गया था।
1- इस अधिनियम के अनुसार, केंद्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषदों में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि कर दी गयी।
2- निर्वाचित सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते थे। स्थानीय निकायों से निर्वाचन परिषद का गठन होता था। ये प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्यों का निर्वाचन करती करते थे। प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्य केन्द्रीय व्यवस्थापिका के सदस्तों का निर्वाचन करते थे ।
3- इस अधिनियम द्वारा मुसलमानों के लिये पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लागू की गयी।
4-व्यवस्थापिका सभाओं के अधिकारों में वृद्धि की गयी। सदस्यों को आर्थिक प्रस्तावों पर बहस करने, उनके विषयों में संशोधन प्रस्ताव रखने, उनको कुछ विषयों पर मतदान करने, प्रश्न पूछने, साधारण प्रश्नों पर मतदान करने, साधारण प्रश्नों पर बहस करने तथा सार्वजनिक हित के प्रस्तावों को प्रस्तुत करने का अधिकार दिया गया। व्यवस्थापिकाओं को इतने अधिकार देने के पश्चात भी गवर्नर जनरल तथा गवर्नरों को व्यवस्थापिकाओं में प्रस्तावों को ठुकराने का अधिकार था।
5-गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य को नियुक्त करने की व्यवस्था की गयी। पहले भारतीय सदस्य के रूप में सत्येंद्र सिन्हा को नियुक्त किया गया।
परिणाम
1909 के सुधारों से भारतीय राजनैतिक प्रश्न का न कोई हल हो सकता था न ही इससे वह निकला। अप्रत्यक्ष चुनाव, सीमित मताधिकार तथा विधान परिषद की सीमित शक्तियों ने प्रतिनिधि सरकार को मिश्रण सा बना दिया ।
लार्ड मोर्ले ने स्पष्ट तौर पर कहा कि भारत स्वशासन के योग्य नहीं है। कांग्रेस द्वारा प्रतिवर्ष स्वशासन की मांग करने के पश्चात भी मार्ले ने स्पष्ट तौर पर उसे ठुकरा दिया। उसने भारत में संसदीय व्यवस्था या उत्तरदायी सरकार की स्थापना का स्पष्ट विरोध किया। उसने कहा ‘यदि यह कहा जाये कि सुधारों के इस अध्याय से भारत में सीधे अथवा अवश्यंभावी संसदीय व्यवस्था स्थापित करने अथवा होने में सहायता मिलेगी तो मेरा इससे कोई संबंध नहीं होगा’।
वास्तव में 1909 के सुधारों का मुख्य उद्देश्य उदारवादियों को दिग्भ्रमित कर राष्ट्रवादी दल में फूट डालना तथा साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को अपना कर राष्ट्रीय एकता को विनष्ट करना था। सरकार इन सुधारों द्वारा नरमपंथियों एवं मुसलमानों को लालच देकर राष्ट्रवाद के उफान को रोकना चाहता थी। सरकार एवं मुस्लिम नेताओं ने जब भी द्विपक्षीय वार्ता की, उसका मुख्य विषय पृथक निर्वाचन प्रणाली ही रहा किंतु वास्तव में इस व्यवस्था से मुसलमानों का छोटा वर्ग ही लाभान्वित हो सका।
2 भारत सरकार अधिनियम 1919
भारत सरकार अधिनियम 1919 ब्रिटिश संसद का एक अधिनियम था जिसमें अपने देश के प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी बढ़ाने की मांग की गई थी। यह अधिनियम 1916 और 1921 के बीच भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड और भारत के तत्कालीन सचिव एडविन मोंटेगू की एक रिपोर्ट की सिफारिशों पर आधारित था। इसलिए इस अधिनियम द्वारा निर्धारित संवैधानिक सुधारों को मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के रूप में जाना जाता है। मोंटफोर्ड सुधार।
विषय, ‘भारत सरकार अधिनियम 1919’ BPSC परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण है और आधुनिक भारतीय इतिहास का एक हिस्सा है। यह लेख अधिनियम के बारे में प्रासंगिक तथ्य प्रदान करेगा
पृष्ठभूमि
केंद्रीय सरकार
1919 ई. के अधिनियम अनुसार केंद्रीय व्यवस्थापिका में दो सदन कर दिए गए। उच्च सदन को कौन्सिल ऑफ स्टेट और निम्न सदन को लेजिस्लेटिव एसेंबली कहा जाता था। उच्च सदन का कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया और निम्न सदन का कार्यकाल 3 वर्ष निर्धारित किया गया। उच्च सदन में सदस्यों की संख्या 60 रखी गयी जिसमें 33 सदस्य निर्वाचित होंगे और 27 सदस्यों को गवर्नर जनरल द्वारा मनोनीत किया जाता था। संविधान में परिवर्तन या संशोधन का अधिकार इंग्लैंड की संसद को था। दोनों सदनों की बैठक बुलाने निलंबित करने और भंग करने का अधिकार गवर्नर जनरल को था। निम्न सदन के सदस्यों की संख्या 145 रखी गई। इसमें 103 निर्वाचित और 42 मनोनीत होते थे।
प्रांतीय सरकार- द्वैध शासन
1919 के अधिनियम के अनुसार प्रांतीय व्यवस्थापिका एक सदन की बनाई गई। इसे लेजिसलेटिव काउंसिल कहा जाता था। सभा कार्यकाल 3 वर्ष निर्धारित किया गया। विभिन्न प्रांतों में सदस्यों की संख्या अलग-अलग थी। 70% सदस्य निर्वाचित होंगे और 30% गवर्नर द्वारा मनोनीत होंगे। मनोनीत सदस्य में से 20% सरकारी और 10% गैर सरकारी होंगे। प्रांतीय विषयों को रक्षित और हस्तांतरित दो श्रेणियां में बांट दिया गया। रक्षित विषयों पर नियंत्रण गवर्नर जनरल और उसकी कौंसिल को था। हस्तांतरित विषयों पर नियंत्रण मंत्रियों का होता था। इन मंत्रियों को निर्वाचित विधान परिषद के सदस्य करते थे। किसी भी विधेयक को प्रस्तुत करने से पहले गवर्नर के अनुमति लेनी पड़ती थी। गवर्नर की मंजूरी के बिना कोई भी विधेयक कानून का रूप नहीं ले सकता था। गवर्नर किसी भी विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधान परिषद में लौटा सकता था। बजट पर सदस्यों का मतदान का अधिकार था। इस प्रकार विधान परिषद के अधिकार सीमित ही थे।
गवर्नर जनरल की शक्तियां
वास्तविक प्रशासनिक शक्तियां गवर्नर जनरल के हाथों में ही केंद्रित था। गवर्नर जनरल भारत सचिव के माध्यम से ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी होता था, भारतीय जनता के प्रति नहीं। गवर्नर जनरल की कार्यकरिणी परिषद में कुछ परिवर्तन किए गए।प्रशासनिक की हर शाखा में भारतीयों के शामिल करने के बढ़ते मांग को ध्यान में रखते हुए गवर्नर जनरल की कार्यकरिणी के 6 सदस्यों में से तीन भारतीय सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान रखा गया। परंतु भारत के सदस्यों को प्रशासन के कम महत्वपूर्ण विभाग जैसे कानून, शिक्षा, श्रम, स्वास्थ्य या उद्योग आदि दिए गए। भारत के सदस्य गवर्नर जनरल के प्रति उत्तरदायी थे तथा गवर्नर जनरल भारत सचिव के माध्यम से ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था।
भारत सरकार अधिनियम, 1919 – अन्य मुख्य विशेषताएं
यह अधिनियम पहली बार भारत में एक सार्वजनिक सेवा आयोग की स्थापना के लिए प्रदान किया गया।
अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि 10 साल बाद सरकार के कामकाज का अध्ययन करने के लिए एक वैधानिक आयोग का गठन किया जाएगा। इसके परिणामस्वरूप 1927 का साइमन कमीशन बना।
इसने लंदन में भारत के लिए उच्चायुक्त का कार्यालय भी बनाया।
भारत सरकार अधिनियम 1919 की मेरिट
द्वैध शासन ने जिम्मेदार सरकार की अवधारणा पेश की।
इसने एकात्मक संघीय ढांचे की अवधारणा को पेश किया।
प्रशासन में भारतीयों की बढ़ी हुई भागीदारी थी। उन्होंने कुछ विभागों जैसे श्रम, स्वास्थ्य आदि को रखा।
पहली बार चुनाव लोगों को ज्ञात हुए और इसने लोगों में राजनीतिक चेतना पैदा की।
कुछ भारतीय महिलाओं को भी पहली बार मतदान करने का अधिकार था।
भारत सरकार अधिनियम 1919 की सीमाएँ
इस अधिनियम ने समेकित और सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व बढ़ाया।
मताधिकार बहुत सीमित था। इसका विस्तार आम आदमी तक नहीं हुआ।
गवर्नर-जनरल और राज्यपालों को क्रमशः केंद्र और प्रांतों में विधानसभाओं को कमजोर करने की बहुत शक्ति थी।
केंद्रीय विधायिका के लिए सीटों का आवंटन जनसंख्या पर आधारित नहीं था, लेकिन अंग्रेजों की नजर में प्रांत का ‘महत्व’ था।
रौलट अधिनियमों को 1919 में पारित किया गया था जिसने प्रेस और आंदोलन को गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया था। भारतीय विधान परिषद के सदस्यों के सर्वसम्मत विरोध के बावजूद, उन विधेयकों को पारित किया गया। कई भारतीय सदस्यों ने विरोध में इस्तीफा दे दिया।
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