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मिथिला के कर्नाट वंश

• पाल वंश के शासक रामपाल के शासनकाल में नान्यदेव ने 1097 ई० में मिथिला में कर्नाट वंश की स्थापना की। नेपाल का क्षेत्र भी इसी के अधीन था। नान्यदेव ने ‘कर्नाटकुल भूषण’ की उपाधि धारण की थी।

• नान्यदेव का पुत्र गंगदेव एक योग्य प्रशासक था, जिसकी राजधानी सिमरांवगढ़ थी, जो अब नेपाल के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित है।

जब बख्तियार खिलजी का अभियान बिहार के क्षेत्र में हुआ तब कर्नाट वंश के शासक नरसिंह देव ने उसे नजराना देकर संतुष्ट किया। उस समय नरसिंह देव का तिरहुत और दरभंगा क्षेत्रों पर अधिकार था।

• राम सिंह के शासन काल में तुगरिल तुगन ने असफल सैनिक अभियान किया था, जिसकी चर्चा तिब्बती यात्री धर्म स्वामिन ने की है।

• कर्नाट शासकों के साथ दिल्ली के सुल्तानों का सम्पर्क निरंतर बना रहा।

ग्यासुद्दीन तुगलक से पराजित होने के बाद हरि सिंह नेपाल चला गया।

• नेपाल में तलेजु नामक देवी की पूजा की परंपरा की शुरुआत का श्रेय हरि सिंह को प्राप्त

• हरि सिंह की जगह पर ग्यासुद्दीन तुगलक ने स्थानीय व्यक्ति अहमद को केंद्रीय प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया।

• हरि सिंह ने नेपाल में मैथिल समाज को एक नया स्वरूप प्रदान किया। • हरि सिंह के बाद मति सिंह, शक्ति सिंह और श्याम सिंह शासक हुए।

• इनका शासन निचले मैदानी क्षेत्र से तिरहुत तराई क्षेत्र (पूर्णिया से चंपारण) तक विस्तृत था।

तिरहुत के मुख्य क्षेत्र में कर्नाटों के स्थान पर ओइनारा वंश का राज्य स्थापित हुआ। हरि सिंह के वंशज लगभग 1393 ई. तक अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत रहे लेकिन 14वीं सदी के अंतिम दशक तक उनका पतन हो गया।

वैनवार वंश

• 14वीं सदी में तिरहुत पर मुसलमानों के अधिकार के पश्चात् एक नये राजवंश वैनवार वंश की स्थापना हुई।

वैनवार वंश के शासनकाल में अनेक प्रसिद्ध शासक हुए, जिनमें शिव सिंह का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

महाराज शिव सिंह की छत्र-छाया में अमर कवि विद्यापति ने अपने काव्य की रचना की थी।

• तुर्क-अफगान-साम्राज्य के पतन के काल में और भारत पर अधिकार जमाने हेतु मुगलों और अफगानों में युद्ध छिड़ा रहता था

. महेश ठाकुर द्वारा संस्थापित वंश को ‘दरभंगा राजवंश’ के जाना जाता है। मुगल सम्राट अकबर ने महेश ठाकुर की विद्वता से प्रभावित होकर पुरस्कार स्वरूप : सामाजिक

मिथिला का राज्य दे दिया था।

महेश ठाकुर के वंश के शासकों ने आधुनिक युग तक मिथिला की सांस्कृतिक प्रगति का मार्गदर्शन किया।

• दरभंगा राजवंश में चन्द्रेश्वर का काल 14वीं सदी माना जाता है।

चन्द्रेश्वर 14वीं सदी के प्रारंभ में ‘कृत्यरत्नाकर’ का संकलन किया था। ‘कृत्यरत्नाकर’ ग्रंथ के अनुसार 13वीं-14वीं सदी में मिथिला के लोग विष्णु हरि तथा कि के उपासक थे।

चेरो राजवंश

• पाल वंश के पतन के पश्चात् बिहार में जनजातीय राज्यों का उदय हुआ, जिनमें के राजवंश प्रमुख था।

. राज • चेरो राज ने शाहाबाद, सारण, चम्पारण, मुजफ्फरपुर एवं पलामू जिलों में शक्तिशाली की आधारशिला रखी एवं लगभग 300 वर्षों तक शासन किया।

शाहाबाद जिले में चेरो के चार राज्य थे।

धुधीलिया नामक चेरो सरदार का मुख्यालय बिहिया था।

दूसरा राज्य भोजपुर था, जिसका मुख्यालय तिरावन तथा राजा सीताराम था। • तीसरे राज्य का मुख्यालय चैनपुर था।

चौथे राज्य का मुख्यालय देव मार्कण्डेय था। यहां का राजा

फूलचंद को ही जगदीशपुर के मेले को शुरू करने का श्रेय प्राप्त

फूलचंद था।

है।

• पलामू के चेरो राजा में सबसे महान शासक मेदिनी राय था, जिसका राज्य गया, दाउदना एवं अरवल तक विस्तृत था।

मेदिनी राय के पश्चात् उसका पुत्र प्रताप राय राजा बना, जिसके शासनकाल में तीन मुग आक्रमण हुए।

अंतत: 1660 ई. में चेरो को मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया।

• भोजपुर के उज्जैन वंशीय शासक

धार (मालवा) पर 1305 में अलाउद्दीन खिलजी की सेना का

अधिकार हो जाने के ब भोजराज ने अपने पुत्र देवराज एवं अन्य राजपूत अनुयायियों के साथ कीकट (शाहाबाद पलामू) क्षेत्र के चेरो राजा मुकुन्द के यहां शरण ली। • इनका

मूल निवास स्थान उज्जैन था, अतः ये उज्जैनी राजपूत कहलाए। • चेरो राजा ने इन उज्जैनी राजपूतों

को गंगा घाटी का क्षेत्र जागीर के रूप में दिया। मुस्लिम आक्रमण में मुकुंद के मारे जाने के बाद उसका पुत्र सहसबल राजा बना। • सहसबल ने भोजराज को मार डाला, प्रत्यत्तर में है ।

देवराज ने सन्तन सिंह के नाम से भोजपुर पर राज किया।

• सन्तन सिंह की 1344 ई. में मृत्यु हो गई। बाद में ओंकारदेव के नेतृत्व में उज्जैनों ने पुनः

लगभग 1457 ई. में भोजपुर पर अधिकार कर लिया एवं बिहटा को अपना केंद्र बनाया। • ओंकारदेव के बाद दुलर्भदेव उज्जैनों का नेता बना, जो बिहार के सूबेदार जमाल खां से पराजित होकर जंगलों में भाग गया तथा दावा को अपना केंद्र बनाया।

• सासाराम के जागीरदार हसन खां और उसके पुत्र शेर खां (शेरशाह सूरी) का उज्जैनों के साथ अच्छे संबंध थे।

राजा रामशाही ने उज्जैनों की राजधानी दावा से पुनः बिहटा स्थानांतरित की।

• कालांतर में राजा नारायणमल के नेतृत्व में उज्जैनों का पुनरुत्थान हुआ तथा बक्सर उनका प्रमुख केंद्र बना।

उज्जैनों और चेरों के बीच 1611 ई. में एक बड़ा संघर्ष हुआ, जिसमें दिल्ली की सेना के मदद से उज्जैनी विजयी हुए।

इसके पश्चात् उज्जैन शासक बक्सर, डुमरांव एवं जगदीशपुर के क्षेत्र में एक मजबूत शक्ति के रूप में उभरे तथा यह स्थिति ब्रिटिश काल तक बनी रही। नूहानी वंश

सिकंदर लोदी ने लगभग 1504 में बंगाल के शासकों के साथ संधि करके मुंगेर के क्षेत्र को बिहार और बंगाल के बीच सीमा रेखा निर्धारित कर दिया।

• बिहार शरीफ अभिलेख के अनुसार सिकंदर लोदी ने 1495-96 ई. में हुसैनशाह शर्की को पराजित कर दरिया खां नूहानी को बिहार में नियुक्त किया, जो 1523 ई. में अपनी मृत्यु तक बिहार का प्रभारी शासक रहा।

• दरिया खां नूहानी के पश्चात् उसका पुत्र बहार खां नूहानी बिहार का प्रशासक बना। • पानीपत की प्रथम लड़ाई (1526 ई.) के बाद बहार खां ने सुल्तान मोहम्मद शाह नूहानी नाम धारण कर बिहार में स्वतंत्र सत्ता की स्थापना की।

• सुल्तान मोहम्मद ने इब्राहिम लोदी की सेना को कनकपुरा युद्ध में पराजित किया।

• सुल्तान मोहम्मद की 1528 ई. में मृत्यु हो गई तथा उसका अल्पवयस्क पुत्र जलालुद्दीन उर्फ जलाल खां शासक नियुक्त हुआ, जबकि फरीद खां उर्फ शेर खां उसका संरक्षक नियुक्त हुआ।

• मुगल शासक हुमायूं ने 1532 ई. में दौरा/दोहरिया के युद्ध में अफगानों को पराजित कर बिहार के कई क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।

ज्ञातव्य है कि नूहानी सरदारों द्वारा जलाल खां को लेकर पलायित हो जाने के बाद शेर खां ने ‘हजरत-ए-आला’ की उपाधि धारण की और अपना शासन प्रारंभ कर दिया।

शेर खां आगे चलकर शेरशाह सूरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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