बिहार की प्रतियोगिता परीक्षाओ में बिहार से संबंधित प्रश्नो को प्रमुखता दी जाती है । इस कड़ी में बिहार एक परिचय -1 एवं बिहार एक परिचय -2 नाम से दो टॉपिक पहले दिया जा चूका है । पार्ट by पार्ट बिहार के इतिहास भूगोल इकॉनमी राजव्यवस्था से सम्बंधित टॉपिक देने का प्रयास रहेगा ।
काल खण्ड के अनुसार बिहार के इतिहास को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है
(1) पूर्व-प्रस्तर युग (2) मध्यवर्ती प्रस्तर युग (3) नव-प्रस्तर युग (4) ताम्र-प्रस्तर युग (5) वैदिक काल (6) महाजनपद काल
पूर्व-प्रस्तर युग ( 1,00,000 ई. पू.) : आरम्भिक प्रस्तर युग के अवशेष फाल, कुल्हाड़ी, चाकू, खुरपी, रजरप्पा (हजारीबाग) एवं संजय घाटी (सिंहभूम) में मिले हैं। ये साक्ष्य जेठियन (गया), मुंगेर और नालन्दा जिले से भी उत्खनन के क्रम में प्राप्त हुए हैं।
मध्यवर्ती-प्रस्तर युग (1,00,000 ई. पू. से 40,000 ई. पू.) : इसके अवशेष बिहार में मुख्यतः मुंगेर जिले से प्राप्त हुए हैं। इसमें साक्ष्य के रूप में छोटे टुकड़ों से बनी वस्तुएँ तथा तेज धार और नोंक वाले औजार प्राप्त हुए हैं।
नव-प्रस्तर यग (2,500 ई. पू. से 1,500 ई. पू.) : इस काल के ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में पत्थर के बने सक्ष्म औजार प्राप्त हुए हैं। हड्डियों के बने सामान भी प्राप्त हुए हैं। इस काल क अवशेष उत्तर बिहार में चिरांद (सारण जिला) और चेचर (वैशाली) से प्राप्त हुए हैं।
ताम्र-प्रस्तर युग (1,000 ई. पू. से 900 ई. पू.)
- इस काल में पाये गये काले और लाल मृद्भांड सामान्य तौर पर हड़प्पा सभ्यता की विशेषता माने जाते हैं।
* बिहार में इस युग के अवशेष चिरांद (सारण), चेचर (वैशाली), सोनपुर (गया), मनेर, ताराडीह (बोध गया), घोड़ा करोरा (राजगीर), समस्तीपुर, सासाराम, भागलपुर आदि से पाये गये हैं।
* चिराद तथा बक्सर से पूर्व उत्तरी काले चमकीले मृदभांड के प्रमाण मिले हैं ।
- इस युग में बिहार सांस्कृतिक रूप से विकसित हुआ तथा मानव ने गुफाओं से बाहर आकर
कृषि कार्य की शुरुआत की तथा पशुओं को पालतू बनाया।
वैदिक काल : भारत में आर्यों ने सर्वप्रथम ‘सप्त सैंधव’ प्रदेश में बसना प्रारम्भ किया। इस क्षेत्र में बहने वाली सात नदियों का उल्लेख हमें ऋग्वेद में मिलता है। ये हैं सिंधु, सरस्वती, सतलज, व्यास, रावी, झेलम और चेनाब।।
.मगध में निवास करने वाले लोगों को ‘अथर्ववेद’ में ब्रात्य कहा गया है। ये प्राकृत भाषा बोलते थे। बिहार में वैदिक संस्कृति का प्रसार मुख्यत: उत्तर वैदिक काल में ही हुआ।
इसी काल में बिहार में आर्यीकरण का प्रारम्भ हुआ।
वाराह पुराण के अनुसार कीकट को एक ‘अपवित्र प्रदेश’ कहा गया है, जबकि वायु पुराण, पद्म पुराण में गया, राजगीर, पुनपुन आदि को पवित्र स्थानों की श्रेणी में रखा गया है।
वायु पुराण में गया क्षेत्र को असुरों का राज कहा गया
- आर्यों के विदेह क्षेत्र में बसने की चर्चा शतपथ ब्राह्मण में की गई है। इसमें विदेह माधव द्वारा अपने पुरोहित गौतम राहूगण के साथ अग्नि का पीछा करते हुए सदानीरा नदी (आधुनिक गंडक) तक पहुँचने का वर्णन है।
वाल्मीकि रामायण में मलद और करुणा शब्द का उल्लेख बक्सर के लिए किया गया है जहाँ ताड़का राक्षसी का वध हुआ था।
बिहार और वैदिक संहिता (साहित्य) विश्व के सबसे प्राचीन माने जाने वाली कृति वेद संहिता है। ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद तथा सामवेद में बिहार का उल्लेख मिलता है।
वेदों की संहिता से रचित ब्राह्मण ग्रन्थ (ऐतरेय, शतपथ, तैत्तरीय आदि) हैं जिसमें बिम्बिसार के पूर्व की घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है।
* बिहार का प्राचीनतम वर्णन, अथर्ववेद तथा पंचविश ब्राह्मण में मिलता है जो सम्भवतः 10वीं-9वीं ई. पू. का था, जिसमें बिहार को ब्रात्य कहा गया है, जबकि ऋग्वेद में बिहार और बिहार वासियों को कीकर कहा गया है।
पुराण : पुराणों के रचयिता लोमहर्ष अथवा उसके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं। अठारह में से
अधिकांश पुराणों की रचना तीसरी-चौथी शताब्दी (गुप्तकाल) में हुई।
अठारह पुराणों में मत्स्य, वायु तथा ब्राह्मण पुराण बिहार के ऐतिहासिक स्रोत के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन पुराणों से शुंगवंशीय शासक पुष्यमित्र का वर्णन मिलता है जिसने 36 वर्षों तक शासन किया। इन पुराणों से उत्तर युगीन मौर्यकालीन शासकों के शासन की भी जानकारी प्राप्त होती है।
महाभाष्या : मौर्य युगीन साम्राज्य की समाप्ति के बाद शुंग वंश का प्रतापी राजा पुष्यमित्र हुआ, जिसके पुरोहित पतंजलि थे। पतंजलि ने उनकी वीरता, कार्यकुशलता तथा यवनों पर आक्रमण की चर्चा अपनी महाभाष्य में की है।
मालविकाग्निमित्रम् : यह कालिदास द्वारा रचित नाटक है जिसमें शुंगकालीन राजनीतिक गतिविधियों का उल्लेख मिलता है। कालिदास यवन आक्रमण की चर्चा करते हैं जिसमें पुष्यमित्र के पुत्र अग्निमित्र ने सिन्ध पर आक्रमण कर यवन को पराजित किया था।
थेरावली : इसकी रचना जैन लेखक मेरुतुंग ने की थी। इसमें उज्जयिनी के शासकों की वंशावली है तथा पुष्यमित्र के बारे में उल्लेख किया गया है कि उसने 36 वर्षों तक शासन किया था।
दिव्यावदान : इसमें अनेक राजाओं की कथाएँ हैं। इस बौद्धिक ग्रन्थ में पुष्यमित्र को मौर्य वंश का अन्तिम शासक कहा गया है।
पाणिनी की अष्टाध्यायी : यह पाँचवीं सदी पूर्व संस्कृत व्याकरण का अपूर्व ग्रन्थ है।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र : यह ग्रन्थ मौर्यकालीन इतिहास और राजनीति का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। मनुस्मृति ग्रन्थ : मनुस्मृति सबसे प्राचीन और प्रामाणिक ग्रंथ माना गया है, जिसकी रचना शुंग काल में हुई थी। यह ग्रन्थ शंगकालीन भारत की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक दशा का बोध कराता है। मनुस्मृति के प्रमख टीकाकार, भारुचि, मेघातिथि, गोविन्दराज तथा कुल्लूक भट्ट हैं। १ टाकाकरण हिन्दू समाज के विविध पक्षों के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
– महाजनपद काल बुद्ध के जन्म से पूर्व लगभग छठी शताब्दी ई. पू. में भारतवर्ष 16 महाजनपदों में बंटा था, जिसका उल्लेख हमें बौद्ध ग्रंथ के ‘अंगुत्तरनिकाय’ में मिलता है। भारत के सोलह महाजनपदों में से तीन-अंग, मगध और वज्जि बिहार में थे। _ बुद्ध काल में गंगा घाटी में लगभग 10 गणराज्य थे। इनमें अलकप्प के बुलि, वैशाली के लिच्छिवि और मिथिला के विदेह बिहार के अंतर्गत आते थे।
अंग : अंग राज्य का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है। भागलपुर के समीप स्थित इस स्थान को ह्वेनसांग चेनन्पो कहता था। अंग राज में कुल 25 राजा हुए जिनमें पहला आर्य राजा तितुक्षी
- महाभारत में चर्चित कुती पुत्र कर्ण यहाँ का अंतिम आर्य राजा था।
- महाभारत युद्ध के पश्चात अंग एवं मगध राज्य के बीच लगातार संघर्ष होता रहा। इस दौरान इस राज्य के अंतिम तीन राजा क्रमशः दधिवाहन, द्रधवर्मन तथा ब्रह्मदत्त थे। दधिवाहन की पुत्री चंदना जैन धर्म (महावीर से प्रेरित होकर) को स्वीकार करने वाली प्रथम महिला थी।
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- मगध के राजा बिम्बिसार ने अंग राज्य के अंतिम राजा ब्रह्मदत्त के समय इस राज्य को मगध साम्राज्य में मिला लिया।
वज्जि संघ : बुद्ध कालीन 10 प्रमुख गणराज्यों में वज्जि संघ एक प्रतिष्ठित गणराज्य था। वर्तमान तिरहुत प्रमंडल में वैशाली और मुजफ्फरपुर तक फैली गंगा नदी के उत्तर में स्थित लिच्छिवियों का गणराज्य था जो आठ कुलों का एक संघ था जिसमें विदेह, ज्ञात्रिक, लिच्छिवी, कात्रिक एवं वज्जि महत्वपूर्ण थे।
- वज्जि संघ की राजधानी वैशाली थी।
वज्जि संघ का लिच्छिवि गणराज्य इतिहास में ज्ञात प्रथम गणतंत्र राज्य था। वज्जि संघ का। सबसे प्रबल सदस्य लिच्छवि राज्य के थे जिसके शासक क्षत्रिय थे। कौटिल्य ने लिच्छवि राज्य का उल्लेख राजशब्दोपजीवी संघ के रूप में किया है। इसमें शातृक या ज्ञातृक एक अन्य सदस्य था, जिसका प्रमुख सिद्धार्थ था। ज्ञातृको के प्रमुख स्थान कुंडग्राम (वैशाली) में सिद्धार्थ के पुत्र महावीर का जन्म 540 ई. पू. में हुआ।
- महावीर की माता त्रिशला लिच्छवि राज्य के प्रमुख चेटक की बहन थी।
- वज्जि संघ का संविधान एवं प्रशासन संघात्मक कुलीनतंत्र की तरह था।
- राजाओं की सभा संस्था कहलाती थी। संस्था में सभी राजाओं के अधिकार समान
वैशाली राजवंश का प्रथम शासक नमनेदिष्ट था, जबकि अन्तिम राजा सुति या प्रमाति था। इस राजवंश में कुल 24 राजा हुए।
इसके आगे के टॉपिक में मौर्यकालीन बिहार की चर्चा की जाएगी ।
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