राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व – (अनुच्छेद 36-51)
. इसमें अन्तर्विष्ट उपबंध किसी न्यायालय द्वारा लागू नहीं होंगे, लेकिन फिर भी यह देश के शासन के आधार हैं तथा विधि बनाने में इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा. (अनु. 37)
(1) राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा.-(अनु. 38)
(2) राज्य विशिष्टतया आय की असमानताओं को कम करने तथा विभिन्न व्यवसायों में लगे लोगों के मध्य प्रतिष्ठा, सुविधाओं तथा अवसर की असमानताओं को समाप्त करने का प्रयास करेगा.
(3) राज्य स्त्री तथा पुरुष, सभी नागरिकों को समान रूप से आजीविका के पर्याप्त साधन जुटाएगा.
(4) समुदाय के भौतिक संसाधनों का नियन्त्रण राज्य इस प्रकार करे कि वह सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हों.
(5) राज्य यह प्रयास करेगा कि उत्पादन के साधन तथा धन का अहितकारी संकेन्द्रण न हो,
(6) राज्य ऐसी व्यवस्था करेगा जिसके अन्तर्गत पुरुष तथा स्त्रियों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिलना चाहिए.
(7) राज्य इस प्रकार का प्रबन्ध करे कि कर्मकारों एवं बालकों के स्वास्थ्य एवं शक्ति का दुरुपयोग न हो.
(8) बालकों के स्वतन्त्र एवं गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर एवं सुविधाएं दी जाएं तथा उनकी नैतिक, आर्थिक शोषण से रक्षा की जाए. (अनु. 39) (9) सभी को समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त हो. -(अनु. 39 क) (10) ग्राम पंचायतों का गठन होना चाहिए जिससे स्वायत्त शासन मजबूत हो सके. (अनु. 40) .
(11) राज्य, काम तथा शिक्षा पाने के तथा बेरोजगारी, बुढ़ापा, बीमारी तथा अशक्तता की स्थिति में लोक सहायता पाने के लिए प्रबन्ध करें. (अनु. 41) (12) राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए और प्रसूति सहायता उपलब्ध कराने की व्यवस्था करें. (अनु. 42) (13) राज्य कर्मकारों के लिए काम, निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवन स्तर तथा सामाजिक तथा सांस्कृतिक अवसर उपलब्ध कराएगा और ग्रामों में कुटीर उद्योगों को बढ़ाने का प्रयास करेगा. (अनु. 43) (14) उद्योगों के प्रबन्ध में कर्मकारों की भागीदारी के लिए राज्य विधि द्वारा व्यवस्था (अनु. 43 क) करेगा.
अनुच्छेद 43 ख- 97वें संविधान संशोधन अधिनियम 2011 द्वारा अनुच्छेद 43 ख (43B) जोड़ा गया है. जिसके अनुसार राज्य को कोओपरेटिव सोसाइटीज के ऐच्छिक निर्माण, स्वायत्त कार्य, लोकतांत्रिक नियन्त्रण और व्यवसायिक प्रबन्धन के प्रोत्साहन के लिए प्रयास करना चाहिए.
(15) राज्य भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में सभी नागरिकों के लिए एक जैसी सिविल संहिता लागू कराने का प्रयास करेगा.-(अनु. 44)
(16) राज्य बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रबन्ध करेगा.-(अनु. 45)
अनुच्छेद 45 में संशोधन
86वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा अनुच्छेद 45 संशोधन किया गया है. जिसमें छह साल से कम उम्र के बच्चों की शुरूआती देखभाल और उनकी शिक्षा की व्यवस्था की गई है. अनुच्छेद 45 : “राज्य को सभी बच्चों को तब तक के लिए शुरूआती देखभाल और शिक्षा की व्यवस्था करने के लिए प्रयास करना होगा जब तक वह छह साल की आयु का नहीं हो जाता है.
(17) राज्य, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की अभिवृद्धि के लिए प्रयास करेगा. (अनु. 46) (18) राज्य नागरिकों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए प्रयास करेगा.-(अनु. 47)
(19) राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक ढंग से संगठित करने का प्रयास करेगा और दुधारू पशुओं के वध पर रोक लगाएगा. (अनु. 48) (20) राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्य जीवन की रक्षा का प्रयास करेगा. — (अनु. 48 क)
(21) राष्ट्रीय महत्व के घोषित संस्मारकों, स्थानों एवं वस्तुओं के संरक्षण के लिए राज्य अनिवार्य रूप से कार्य करेगा.-(अनु. 49) (22) राज्य की लोक सेवाओं में कार्यपालिका को न्यायपालिका से पृथक् करने के लिए राज्य प्रयास करेगा. (अनु. 50) (23) राज्य अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की अभिवृद्धि का, राष्ट्रों के मध्य न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाए रखने का, संगठित लोगों के एकदूसरे से व्यवहारों में अन्तर्राष्ट्रीय विधि और संधि बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का और अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता के द्वारा निपटाने के लिए प्रोत्साहन देने का प्रयास करेगा. (अनु. 51)
मूल कर्तव्य (अनुच्छेद 51 क)
अनु. 51 (क) के अन्तर्गत व्यवस्था है कि प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह
(1) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान का आदर करे.
(2) स्वतन्त्रता के लिए राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले आदर्शों को हृदयंगम करे तथा उनका अनुपालन करे.
(3) भारत की सम्प्रभुता, एकता तथा अखण्डता की रक्षा करे तथा उसे बनाए रखे.
(4) देश की रक्षा करे तथा बुलाए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे.
(5) धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे भारत के लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें; स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध प्रथाओं का त्याग करे,
(6) हमारी सामूहिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे.
(7) प्राणि मात्र के लिए दयाभाव रखे तथा प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अन्तर्गत झील, वन, नदी और वन्य जीव हैं, की रक्षा एवं संवर्धन करे.
(8) मानववाद, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा ज्ञानार्जन एवं सुधार की भावना का विकास करे.
(9) हिंसा से दूर रहे तथा सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे.
(10) सामूहिक तथा व्यक्तिगत गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर विधियों
(मूल कर्त्तव्य 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के अन्तर्गत जोड़े गए)
मौलिक कर्तव्यों में वृद्धि
86वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा संविधान के अनुच्छेद 51 ए में संशोधन करके (जे) के बाद नया अनुच्छेद (के) जोड़ा गया है, “इसमें 6 साल से 14 साल तक की आयु के बच्चे के माता-पिता या अभिभावक अथवा संरक्षक को अपने बच्चे को शिक्षा दिलाने के लिए अवसर उपलब्ध कराने का प्रावधान है.
राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति (अनुच्छेद 52-73)
भारत का एक राष्ट्रपति होगा. (अनु. 52) जिसमें संघ की कार्यपालिका की शक्ति निहित होगी और वह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार स्वयं अथवा अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा. (अनु. 53)
राष्ट्रपति की नियुक्ति निर्वाचन द्वारा होती है. यह निर्वाचन एक निर्वाचक मण्डल द्वारा होता है जिसके सदस्य
(क) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा
(ख) राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य होते हैं. (अनु. 54)
मई 1992 में 70वें संविधान संशोधन द्वारा पांडिचेरी तथा दिल्ली की विधान सभाओं को भी इस निर्वाचक मण्डल में सम्मिलित किया गया है.
चुनाव की प्रक्रिया-भिन्न-भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मान में एकरूपता तथा राज्यों और संघ में समतुल्यता प्राप्त कराने के लिए संसद और प्रत्येक राज्य की विधान सभा के सदस्य के मत का मूल्य निम्नलिखित विधि से निकाला जाता है
(1) एक निर्वाचित एम. एल. ए. के मत का मूल्य
राज्य की जनसंख्या
– 1000 राज्य विधान सभा के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या
यदि शेष 500 से अधिक हो तो मतों की संख्या में एक जोड़ दिया जाता है.
(2) एक संसद सदस्य के मत का मूल्य
राज्यों की विधान सभा के सदस्यों के लिए नियत कुल मतों की संख्या
संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित
सदस्यों की संख्या
यदि आधे से अधिक भिन्न आए तो उसे एक गिना जाता है.-(अनु. 55) (3) राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा गुप्त मतदान रीति से होता है.
सभी मतदाताओं को मत-पत्र पर अपनी प्राथमिकताएं 1, 2, 3 देनी होती हैं. चुनाव में विजयी होने के लिए प्रत्येक उम्मीदवार को कम-से-कम एक निश्चित संख्या में मत प्राप्त करना अनिवार्य होता है. इस निश्चित संख्या को निर्धारित कोटा कहा जाता है. यह कोटा वैध मतों का स्पष्ट बहुमत होता है अर्थात् आधे से अधिक मत होने चाहिए.
मतगणना के प्रथम चक्र में प्रथम प्राथमिकताओं की गिनती की जाती है और यदि इस में ही किसी उम्मीदवार को निर्धारित कोटा प्राप्त हो जाता है, तो उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है. यदि प्रथम चक्र में निर्धारित कोटा किसी को भी प्राप्त नहीं होता तो द्वितीय चक्र, तृतीय चक्र अर्थात् जब तक निर्धारित कोटे के मत नहीं मिल जाते मतगणना जारी रहती है. द्वितीय चक्र में द्वितीय प्राथमिकताओं को गिना जाता है तथा जिस उम्मीदवार के सबसे कम मत होते हैं तथा जिसके जीतने के अवसर नगण्य होते हैं उसके मत दूसरे उम्मीदवारों को हस्तांतरित कर दिए जाते हैं. किसी उम्मीदवार को निर्धारित कोटा मिल जाने पर मतगणना समाप्त कर दी जाती है.
कार्यकाल-राष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष होता है. राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकता है. जब तक नया राष्ट्रपति चुना जाता है, पुराना राष्ट्रपति तब तक कार्य करता रहता है (अधिकतम कितनी बार एक व्यक्ति राष्ट्रपति चुना जा सकता है या एक व्यक्ति का अधिकतम कार्यकाल कितना होना चाहिए इस विषय में संविधान मौन है.). (अनु. 56)
कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित हो चुका है वह पुनः राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए पात्र होगा. (अनु. 57)
राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए योग्यताएँ
1. कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए तभी योग्य होगा जब वह
(1) भारत का नागरिक हो.
(2) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो, और
(3) लोक सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित हो.
2. कोई व्यक्ति यदि सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करता है तो वह राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा.इसमें राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा मंत्री, लाभ का पदधारण करने वालों में नहीं हैं. (अनु. 58)
राष्ट्रपति पद के लिए शर्ते
(1) राष्ट्रपति किसी भी विधान मण्डल या संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होगा. यदि कोई इस प्रकार का सदस्य राष्ट्रपति हो जाता है तो उसे सदस्यता त्यागनी होगी.
(2) राष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा.
(3) राष्ट्रपति संसद की विधि द्वारा निर्धारित उपलब्धियों एवं वेतन भत्तों का हकदार होगा तथा बिना किराया दिए शासकीय आवास का उपयोग करेगा.
(4) राष्ट्रपति की उपलब्धियाँ और भत्ते
उसकी पदावधि के समय कम नहीं किए जाएंगे. (अनु. 59) राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित व्यक्ति पद ग्रहण करने से पहले भारत के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्नलिखित प्रारूप में शपथ लेगा तथा उस पर हस्ताक्षर करेगा.
मैं अमुक..
ईश्वर की शपथ लेता हूँ सत्य निष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं
भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन (अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन) करूँगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूँगा और मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूँगा.”(अनु. 60)
महाभियोग– (1) संविधान के अतिक्रमण के लिए राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाया जा सकता है.
(2) संसद के किसी भी सदन-राज्य सभा या लोक सभा में उस सदन के एकचौथाई (1/4) सदस्य चौदह दिन की पूर्व सूचना के साथ संकल्प प्रस्तावित करने का आशय प्रकट करें.
(3) यह संकल्प उस सदन की कुल संख्या के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए.
(4) संसद का दूसरा सदन इस आरोप का अन्वेषण करेगा. इस जाँच में राष्ट्रपति को उपस्थित होने तथा अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होगा.
(5) यदि राष्ट्रपति पर लगाए गए आरोप सिद्ध हो जाते हैं तथा जाँच करने वाले सदन के द्वारा कुल संख्या के कम-सेकम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है, तो राष्ट्रपति को संकल्प पारित किए जाने की तिथि से उसके पद से हटाना होगा. (अनु. 61)
राष्ट्रपति के पद में रिक्ति भरने के लिए निर्वाचन का समय तथा आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि
(1) राष्ट्रपति पद पर पदासीन राष्ट्रपति की पदावधि पूर्ण होने से पूर्व ही निर्वाचन कर लिया जाता है.
(2) यदि राष्ट्रपति का पद आकस्मिक रूप से पदावधि पूर्ण होने से पूर्व रिक्त हो जाता है तो छ: मास के अन्दर नव राष्ट्रपति का निर्वाचन कर लिया जाएगा तथा उसका कार्यकाल पद ग्रहण करने की तिथि से पूरे पाँच वर्ष के लिए होगा. (अनु. 62)
उपराष्ट्रपति
भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा.-(अनु. 63)
उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है तथा वह अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा. इस समय वह सभापति को मिलने वाले वेतन भत्ते प्राप्त करेगा. लेकिन जब वह राष्ट्रपति पद के कार्यों को करता है तब वह राज्य सभा के सभापति के मिलने वाले वेतन आदि का हकदार नहीं होगा. (अनु. 64) राष्ट्रपति के पद पर आकस्मिक रिक्ति होने पर या उसकी अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना
(1) राष्ट्रपति की मृत्यु या पदत्याग या पद से हटाए जाने की स्थिति में उपराष्ट्रपति उस तिथि से लेकर नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के पद ग्रहण करने तक राष्ट्रपति के पद पर रहकर कार्य करेगा.
(2) जब राष्ट्रपति बीमारी आदि के कारण कार्य करने में असमर्थ होता है तब उपराष्ट्रपति उसके पुनः पद धारण करने तक राष्ट्रपति पद पर कार्य करता है.
(3) उपराष्ट्रपति जब राष्ट्रपति के पद पर कार्य करता है तो वह राष्ट्रपति को मिलने वाले वेतन भत्ते, उन्मुक्तियाँ तथा विशेषाधिकारों को प्राप्त करने का अधिकारी होता है. (अनु. 65)
उपराष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति का निर्वाचन होता है. यह निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बने निर्वाचन मण्डल द्वारा होता है. यह चुनाव गुप्त मतदान तथा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमण मत द्वारा गुप्त मतदान से होता है.
योग्यताएँ
कोई भी व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह
(1) भारत का नागरिक हो,
(2) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
(3) राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए योग्यता रखता हो,
(4) सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर आसीन न हो, राज्यपाल या मंत्री एवं राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति उसके अन्तर्गत नहीं आते. (अनु. 66)
पदावधि
(1) उपराष्ट्रपति पाँच वर्ष के लिए पद धारण करता है तथा पाँच वर्ष पूरे हो जाने पर तब तक पद पर बना रहता है जब तक नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति पद ग्रहण करता है.
(2) पाँच वर्ष से पूर्व भी वह अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा दे सकता है.
(3) उपराष्ट्रपति को चौदह दिन की पूर्व सूचना देकर राज्य सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प पर लोक सभा की सहमति से पद मुक्त किया जा सकता है. (अनु. 67)
उपराष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन का समय तथा आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि
(1) उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने से पूर्व ही नए उपराष्ट्रपति का चुनाव पूरा कर लिया जाता है.
(2) उपराष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने पर पद रिक्त होने पर यथाशीघ्र नए उपराष्ट्रपति का निर्वाचन किया जाएगा तथा यह नवनिर्वाचित व्यक्ति पद ग्रहण से लेकर पूरे पाँच वर्ष तक पद धारण करेगा. (अनु. 68)
शपथ ग्रहण
प्रत्येक उपराष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ ग्रहण करता है तथा उस पर हस्ताक्षर करता है.-(अनु. 69)
संसद, राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन के लिए ऐसी किसी आकस्मिकता में उपबन्ध कर सकेगी जोकि यहाँ उल्लिखित नहीं है.-(अनु. 70)
राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से सम्बन्धित विवाद
(1) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से उत्पन्न सभी शंकाओं तथा विवादों की जाँच तथा निर्णय का अन्तिम अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को होगा.
(2) यदि किसी कारण से सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को अमान्य घोषित कर देता है, तो उसके द्वारा उस अवधि में किए गए कार्यों को अमान्य घोषित नहीं किया जाएगा.
(3) राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी किसी विषय का विनियमन संसद विधि द्वारा कर सकती है.
(4) राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को निर्वाचक मण्डल में किसी रिक्ति के होने पर प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है. (अनु. 71)
राष्ट्रपति के क्षमा सम्बन्धी अधिकार
राष्ट्रपति को, किसी अपराध के लिए दोषी सिद्ध ठहराए गए किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा, उसका प्रवलम्बन, विराम या परिहार करने की अथवा दण्डादेश के निलम्बन, परिहार या लघुकरण की शक्ति प्राप्त है
(1) सेना न्यायालय द्वारा दिए गए दंड या दंडादेश के सभी मामलों में
(2) किसी विधि के विरुद्ध किए गए अपराध के लिए दिया दण्ड तथा जिस विषय तक संघ कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, तथा
(3) मृत्यु दंडादेश के मामलों में.-(अनु. 72)
संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार इस संविधान के उपबन्धों के रहते हुए भी संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार.
(क) उन विषयों तक जिन पर संसद की विधि बनाने की शक्ति है, और
(ख) किसी संधि या करार के आधार पर भारत सरकार द्वारा इस प्रकार के अधिकारों, प्राधिकार और अधिकारिता के प्रयोग तक होगा. (अनु. 73)
मंत्रिपरिषद् (अनुच्छेद 74-78)
(1) राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद् होगी, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा
(2) राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह के अनुसार कार्य करेगा. लेकिन चवालीसवें संविधान संशोधन के अनुसार मंत्रिपरिषद् से ऐसी सलाह पर पुनर्विचार के लिए कह सकेगा तथा वह पुनर्विचार के पश्चात् दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा.
(3) इस प्रश्न की कोई भी न्यायालय जाँच नहीं कर सकता कि मन्त्रियों ने राष्ट्रपति को क्या सलाह दी; यदि दी तो क्या दी, (अनु. 74)
(1) प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है तथा अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर करता है.
(2) मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपने पद धारण करते हैं.
(3) मंत्रिपरिषद् लोक सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है.
(4) राष्ट्रपति मंत्रियों को पद धारण करने से पूर्व उनको पद की गोपनीयता की शपथ दिलाता है.
(5) किसी भी गैर संसद सदस्य को मंत्री बनाया जा सकता है, लेकिन कोई मंत्री, जो निरन्तर छ: मास की किसी अवधि तक संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा.
(6) मंत्रियों के वेतन, भत्ते संसद द्वारा समय-समय पर निर्धारित किए जाएंगे.(अनु. 75)
91वें संविधान संशोधन (2003) द्वारा अनुच्छेद 75 (1, A, B) जोड़ा गया है जिसके द्वारा मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों की संख्या लोक सभा के कुल सदस्यों की संख्या के 15 प्रतिशत तक सीमित कर दी गयी है.
भारत का महान्यायवादी
(1) उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए योग्यता रखने वाले किसी भी व्यक्ति को राष्ट्रपति भारत का महान्यायवादी नियुक्त कर सकता है.
(2) महान्यायवादी का कार्य राष्ट्रपति द्वारा समय-समय पर सौंपे एवं निर्देशित विधिक कार्यों को करना तथा भारत सरकार को विधि सम्बन्धी सलाह देना है.
(3) महान्यायवादी को भारत के राज्य क्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा.
(4) महान्यायवादी राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करता है तथा राष्ट्रपति द्वारा अवधारित पारिश्रमिक प्राप्त करता है.-(अनु. 76) सरकारी कार्य का संचालन
(1) भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्यवाही राष्ट्रपति के नाम से की हुई मानी जाएगी.
. (2) राष्ट्रपति सरकार का कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए मन्त्रियों के कार्यों के आवंटन के लिए नियम बनाएगा. (अनु. 77) प्रधानमंत्री का कर्तव्य होगा कि वह(A) राष्ट्रपति को संघ सरकार के विधान विषयक तथा प्रशासन सम्बन्धी कार्यकलापों सम्बन्धी निर्णयों की जानकारी देगा. (B) उपर्युक्त विषय से सम्बन्धित जानकारी यदि राष्ट्रपति माँगे तो राष्ट्रपति को देगा.
(C) ऐसे विषय को जिस पर किसी मंत्रि ने निर्णय दे दिया है, किन्तु मंत्रिपरिषद् ने अभी विचार नहीं किया है उसे राष्ट्रपति के कहने पर वह परिषद् के समक्ष रखेगा.(अनु. 78)