Latest Post

Briefly explain the major provisions of the Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021. Also, highlight the social media intermediaries’ concerns regarding these rules After 62 years of signing the Indus waters treaty, India has moved to amend this treaty with Pakistan. Discuss the reasons for this pathbreaking intention of India to modify the treaty with implications on India-Pakistan relations further.

गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी शताब्दी के अन्त में प्रयाग के निकट कौशाम्बी में हुआ ।

मौर्य साम्राज्य के विघटन के बाद दो बड़ी राजनैतिक  शक्तिया उभरी – सातवाहन  और कुषाण । सातवाहनों ने दकन और दक्षिण में स्थायित्व लाने का काम किया । उन्होंने दोनों क्षेत्रो के रोमन साम्राज्य के साथ चले अपने व्यापार के बल पर राजनैतिक और आर्थिक प्रगति कायम की । यही काम कुषाणों ने उत्तर में किया ।in दिनों साम्राज्यों का ईसा की तीसरी सदी के मध्य में अंत हो गया ।

कुषाण साम्राज्य के खँडहर पर नए साम्राज्य का प्रादुर्भाव हुआ,jisne कुषाण और सातवाहन दोनों के पिछले राज्यक्षेत्रों के बहुत बड़े भाग पर आधिपत्य स्थापित किया । यह  था गुप्त साम्राज्य 

गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त (240-280 ई.) था।

श्रीगुप्त का उत्तराधिकारी घटोत्कच (280320 ई.) हुआ।

गुप्त वंश का प्रथम महान सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम था। यह 320 ई. में गद्दी पर बैठा। इसने लिच्छवि राजकुमारी कुमार देवी से विवाह किया। इसने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की।

गुप्त संवत् (319-320 ई.) की शुरुआत चन्द्रगुप्त प्रथम ने की।

चन्द्रगुप्त प्रथम का उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त हुआ, जो 335 ई. में राजगद्दी पर बैठा। इसने आर्यावर्त के 9 शासकों और दक्षिणावर्त के 12 शासकों को पराजित किया। इन्हीं विजयों के कारण इसे भारत का नेपोलियन कहा जाता है। इसने अश्वमेधकर्ता, विक्रमक एवं परमभागवत की उपाधि धारण की। इसे कविराज भी कहा जाता है। समुद्रगुप्त विष्णु का उपासक था। समुद्रगुप्त संगीत-प्रेमी था। ऐसा अनुमान उसके सिक्कों पर उसे वीणा-वादन करते हुए दिखाया जाने से लगाया गया है। समुद्रगुप्त का दरबारी कवि हरिषेण था, जिसने इलाहाबाद प्रशस्ति लेख की रचना की। परमभागवत की उपाधि धारण करने वाला प्रथम गुप्त शासक  समुद्रगुप्त था 

समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त-II हुआ, जो 380 ई. में राजगद्दी पर बैठा। चन्द्रगुप्त-II के शासनकाल में चीनी बौद्ध यात्री फाहियान भारत आया । शकों पर विजय के उपलक्ष्य में चन्द्रगुप्त-II ने चाँदी के सिक्के चलाए।

शाब चन्द्रगुप्त II का राजकवि था। चन्द्रगुप्त II के समय में पाटलिपुत्र एवं उज्जयिनी विद्या के प्रमुख केन्द्र थे।अनुश्रुति के अनुसार चन्द्रगुप्त II के दरबार में नौ विद्वानों की एक मंडली निवास करती थी जिसे नवरत्न कहा गया है। महाकवि कालिदास संभवतः इनमें अग्रगण्य थे। कालिदास के अतिरिक्त इनमें धन्वंतरि, क्षपणक (फलित-ज्योतिष के विद्वान), अमरसिंह (कोशकार), शंकु (वास्तुकार), वेतालभट्ट, घटकर्पर, वाराहमिहिर (खगोविज्ञानी) एवं वररूचि जैसे विद्वान थे। चन्द्रगुप्त II का सान्धिविग्रहिक सचिव वीरसेन शैव मतालंबी था जिसने शिव की पूजा के लिए उदयगिरि पहाड़ी पर एक गुफा का निर्माण करवाया था। वीरसेन व्याकरण, न्यायमीमांसा एवं शब्द का प्रकाण्ड पंडित तथा एक कवि भी था।

चन्द्रगुप्त-II का उत्तराधिकारी कुमारगुप्त-I या गोविन्दगुप्त (415ई.-454 ई.) हुआ।  नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त ने की थी

कुमारगुप्त-I का उत्तराधिकारी स्कन्धगुप्त (455467 ई.) हुआ। स्कन्धगुप्त ने गिरनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनरुद्धार किया। स्कन्धगुप्त ने पर्णदत्त को सौराष्ट्र का गवर्नर नियुक्त किया।

स्कन्धगुप्त के शासनकाल में ही हूणों का आक्रमण शुरू हो गया।अंतिम गुप्त शासक विष्णुगुप्त था।

गुप्त साम्राज्य की सबसे बड़ी प्रादेशिक इकाई ‘देश’ थी, जिसके शासक को गोप्ना कहा जाता था। एक दूसरी प्रादेशिक इकाई भूक्ति थी, जिसके शासक उपरिक कहलाते थे। भूक्ति के नीचे विषय नामक प्रशासनिक इकाई होती थी, जिसके प्रमुख विषयपति कहलाते थे। पुलिस विभाग के साधारण कर्मचारियों को चाट एवं भाट कहा जाता था। पुलिस विभाग का मुख्य अधिकारी दण्डपाशिक कहलाता था। प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी। ग्राम का प्रशासन ग्राम सभा द्वारा संचालित होता था। ग्राम सभा का मुखिया ग्रामीक कहलाता था एवं अन्य सदस्य महत्तर कहलाते थे।

ग्राम-समूहों की छोटी इकाई को पेठ कहा जाता था।

गुप्त शासक कुमारगुप्त के दामोदरपुर ताम्रपत्र में भूमि बिक्री सम्बन्धी अधिकारियों के क्रियाकलापों का उल्लेख है।

भू-राजस्व कुल उत्पादन का 1/4 भाग से 1/6 भाग हुआ करता था

गुप्त काल में बलात् श्रम (विष्टि) राज्य के लिए आय का एक स्रोत माना जाता था। इसे जनता द्वारा दिया जाने वाला कर भी माना जाता था।

आर्थिक उपयोगिता के आधार पर निम्न प्रकार की भूमि थी:

1. क्षेत्र: कृषि करने योग्य भूमि । 2. वास्तु : वास करने योग्य भूमि । 3. चरागाह भूमि : पशुओं के चारा योग्य भूमि । 4. सिल : ऐसी भूमि जो जोतने योग्य नहीं होती थी। 5. अप्रहत्त: ऐसी भूमि जो जंगली होती थी।

सिंचाई  के लिए रहट या घंटी यंत्र का प्रयोग होता था।

श्रेणी  के प्रधान को ज्येष्ठक कहा जाता था।

गुप्तकाल में उज्जैन  सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र था।

पहली बार किसी के सती होने का प्रमाण 510 ई. के भानुगुप्त  के ऐरन अभिलेख से मिलता है, जिसमें किसी भोजराज को मृत्यु पर उसकी पत्नी के सती होने का उल्लेख है।

गुप्तकाल में वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं को गणिका कहा जाता था। वृद्ध वेश्याओं को कुट्टनी  कहा जाता था।

गुप्त सम्राट् वैष्णव धर्म के अनुयायी थे तथा उन्होंने इसे राजधर्म बनाया था। विष्णु का वाहन गरुड़ गुप्तों का राजचिह्न था। गुप्तकाल में वैष्णव धर्म संबंधी सबसे महत्वपूर्ण अवशेष देवगढ़ (जिला-ललितपुर) का दशावतार मंदिर है। यह बेतवा नदी के तट पर स्थित है।

अजन्ता में निर्मित कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही शेष हैं, जिनमें गुफा संख्या 16 एवं 17 ही गुप्तकालीन हैं। इसमें गुफा संख्या 16 में उत्कीर्ण मरणासन्न राजकुमारी का चित्र प्रशंसनीय है। गुफा संख्या 17 के चित्र को चित्रशाला कहा गया है। इस चित्रशाला में बुद्ध के जन्म, जीवन, महाभिनिष्क्रमण एवं महापरिनिर्वाण की घटनाओं से संबंधित चित्र उद्धृत किये गये हैं।

अजंता की गुफाएँ बौद्धधर्म की महायान शाखा से संबंधित हैं।

गुप्तकाल में निर्मित अन्य गुफा बाघ की गुफा है, जो बाघ (जिला-धार, म.प्र.) नामक स्थान पर विंध्यपर्वत को काटकर बनायी गयी थी।

गुप्तकाल में विष्णु शर्मा द्वारा लिखित पंचतंत्र (संस्कृत) को संसार का सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ माना जाता है। बाइबिल के बाद इसका स्थान दूसरा है। इसे पाँच भागों में बाँटा गया है…- मित्रभेद, 2.मित्रलाभ, 3. संधि-विग्रह, 4 लब्ध-प्रणाश, 5 अपरीक्षाकारित्व ।

आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीयम एवं सूर्यसिद्धान्त नामक ग्रंथ लिखे। उसने सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण के वास्तविक कारण बताए। आर्यभट्ट पहला भारतीय नक्षत्र वैज्ञानिक थे जिसने घोषणा की कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है।

राहमिहिर ने वृहत् संहिता, पंचसिद्धांत बृहज्जाक और लघुजातक की रचना की। वृहत् संहिता में नक्षत्र विधा, वनस्पतिशास्त्र, प्राकृतिक इतिहास और भौतिक भूगोल के विषयों पर चर्चा की गई है।

ब्रह्मगुप्त इस युग के महान नक्षत्र वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ थे। उसने यह घोषणा करके न्यूटन के सिद्धांत की पूर्व कल्पना कर ली : “प्रकृति के एक नियम के अनुसार सभी वस्तुएँ पृथ्वी पर गिरती हैं, क्योंकि पृथ्वी स्वभाव से ही सभी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।”

गुप्तकाल में पालकानव ने पशु चिकित्सा पर हस्त्यायुर्वेद लिखा।

नवनीतकम की रचना गुप्तकाल में की गई है। इस पुस्तक में  नुस्खे, सूत्र और उपचार विधियाँ दी गई हैं।

पुराणों की वर्तमान रूप में रचना गुप्तकाल में हुई। इसमें ऐतिहासिक परम्पराओ का उल्लेख है।

संस्कृत गुप्त राजाओं की शासकीय भाषा थी।

गप्तकाल में चाँदी के सिक्कों को रूप्यका कहा जाता था।

याज्ञवल्क्य , नारद, कात्यायन एवं बृहस्पति स्मृतियों की रचना गुप्तकाल में ही हुई।

मंदिर बनाने की कला का जन्म गुप्तकाल में ही हुआ। त्रिमूर्ति  अवधारणा का विकास गुप्तकाल में ही हुआ। गुप्तवंश के शासन ने मंदिरों एवं ब्राह्मणों को सबसे अधिक ग्राम अनुदान में दिया।

गुप्तकाल  लौकिक साहित्य की सर्जना के लिए स्मरणीय है। भास के तेरह नाटक इसी काल के हैं। शूद्रक का लिखा नाटक मच्छकटिका या माटी की खिलौनागाड़ी जिसमें निर्धन ब्राह्मण के साथ वेश्या का प्रेम वर्णित है, प्राचीन नाटकों में सर्वोत्कृष्ट माना जाता है। भारत में गुप्तकाल में लिखे नाटकों के बारे में दो बातें उल्लेखनीय है एक तो सभी नाटक सुखांत नाटक है दुखांत कोई  नहीं : दूसरा यह की उच्च वर्ग के लोग भिन्न भिन्न भाषाएँ बोलते थे ।

कालिदास की कृति अभिज्ञान शाकुंतलम् (राजा दुष्यंत एवं  शकुंतला के प्रेम की कथा) प्रथम भारतीय रचना है जिसका अनुवाद यूरोपीय भाषाओं में हुआ। ऐसी दूसरी रचना है भगवदगीता।

सांस्कृतिक उपलब्धियों के कारण गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है।

नगरों का क्रमिक पतन गुप्तकाल की महत्वपूर्ण विशेषता थी

550 ई0 के आसपास पूर्वी रोमन साम्राज्य के लोगो ने चीनियों से रेशम उत्पादन की कला सीखी जिसका भारतीय व्यापर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा ।


 

Leave a Reply

error: Content is protected !!